रात बढती गयी
चाँद चढ़ता गया
नर्म लहरों पे
नक्काशी गढ़ता गया
हम लपेटा किये
उँगलियों पर लटें
दायरा उनकी यादों का
बढ़ता गया
दिन गुज़रता गया
वक़्त ढलता गया
रौशनी पर सियाही सी
मलता गया
हम रुके भी थके भी
उबासी भी ली
सोच का सिलसिला
फिर भी चलता गया
सख्त है दिल बहुत
ये गुमां था हमें
पर ये तो मोम जैसा
पिघलता गया
पर पिघलने से जब
बूँद इसकी गिरी
एक नयी सी ही सूरत में
ढलता गया
सोचते सोचते लो
सुबह हो गयी
रंग मौसम का भी
अब बदलता गया
नर्म सी है हवा
नर्म सी रौशनी
जैसे हल्दी में
सिन्दूर घुलता गया
हल्दी में जैसे सिन्दूर घुलने गया.. imagine karke hi kitna serene lag raha hai..
ReplyDeleteSundar rachna ke badhai.. :)
सख्त है दिल बहुत
ReplyDeleteये गुमां था हमें
पर ये तो मोम जैसा
पिघलता गया
आंतरिक मन के भाव स्पष्ट झलके
यूँ मान लीजिये की बस .... छु गयी
.. सुन्दर प्रस्तुती
बधाई स्वीकारें। आभार !!!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post_17.html
बहुत प्यारे भाव हैं आपके. हर शब्दों में असीम प्यार समेट रखा है आपने.
ReplyDeleteRanjna ji bahut badhiya likha hai...
ReplyDeleteसख्त है दिल बहुत
ReplyDeleteये गुमां था हमें
पर ये तो मोम जैसा
पिघलता गया
दायरा उनकी यादों का
बढ़ता गया
बहुत ही हृदयस्पर्शी भाव,रंजना जी
beautiful poem...
ReplyDeleteशब्द शब्द मोती ,शब्द शब्द संदल
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