Sunday, December 9, 2012













वो इन्द्रधनुष

कौन कहता है इन्द्रधनुष 
केवल बारिश के बाद निकलता है 
जब बूंदों से भरे बादलों के बीच से
सूरज की किरण गुज़रती है 
मै तो रोज़ देखती हूँ इन्द्रधनुष 
मेरे कालेज की गेलरी में 
फैकल्टी रूम के सामने 
रोज़ उसके मोटे शीशे से गुज़रती धूप 
बना जाती है इन्द्रधनुष 
सीमेंटेड चिकने से फर्श पर 
मै आज भी खेलती हूँ उससे बच्चों की तरह 
कभी मुट्ठियों में बंद करके की कोशिश 
तो कभी हथेली पर रख लेती हूँ वो इन्द्रधनुष 
पर हाँ, पैर कभी नहीं पड़ने देती उस पर 
क्योंकि चाहे कांच का दरवाजा हो 
या बूंदों से भरा बादल 
सूरज की किरण
अपनी कलाकारी में
कोई कसर नहीं छोडती 
         

Friday, December 7, 2012

सुकून तुझे तलाशते तलाशते 

सुकून तुझे तलाशते तलाशते 
बीती जा रही है उम्र 
पर तुम हमेशा पहुँच से बाहर 

तुम्हे पाने की चाहत में 
बदलती गयी जीने का ढंग 
रख दी हसरतें एक कोने में 

निभाती गयी हर हालात 
संभालती रही हर मुश्किल 
और फिर भी मुस्कुराना नहीं छोड़ा 

कुछ न सही तो कम से कम 
मेरी मुस्कान देखने के लिए ही 
चले आओ मेरे पास 

जब आओगे तो शायद 
मेरी मुस्कराहट देख कर 
तुम्हे भी कुछ सुकून मिल जाये 

तब तुम देखोगे दर्द में डूबी हुई
मुस्कान भी खूबसूरत होती है
मोनालिसा की पेंटिंग की तरह 


Friday, November 16, 2012


















तुम्हारे प्यार में डूबी हुई एक याद हूँ मै 
तेरी सांसो में शामिल हूँ तभी आबाद हूँ मै 
मै जब भी टूट कर बिखरी हूँ तुमने थामा है 
मै तुमसे दूर हूँ फिर भी तुम्हारे साथ हूँ मै 

Tuesday, November 13, 2012
















सोंधी सी मिटटी के तपे हुए दीपक में 
सुनहरी लौ आज फिर जगमगाई है 
रंगोली रंगों की, मनचाहे ढंगों की 
हर घर की चौखट पर फिर मुस्कुरायी है 
घनघोर काली सी एक रात पर 
फिर से नन्हे से दीपक ने जीतकर दिखाई है
मित्रो को, सखियों को, गैरों को अपनों को
छोटो को - बडको को, सबको बधाई है

Tuesday, November 6, 2012





















इस राह पर चलते चलते 

आओ चलें 
सबकुछ भूल 
बाँहों में बाहें डाले 
कंधे पर सर टिकाये 
इस लम्बे से रास्ते  पर 

शायद इस दूरी को 
तय करते करते 
दूर हो जाएँ 
आपस की दूरियां 
तुम समझ सको मेरी 
मै समझ सकूँ
तुम्हारी मजबूरियां 

यूँ ही थकते संभलते 
गिरते उठते 
शायद संभलना 
और संभालना आ जाये 
सख्त होती रूखी टहनियों पर 
फिर से कुछ नमी आ जाये 

यूँ ही कदम मिलाकर 
साथ चलते चलते 
याद आ जाएँ शायद तुम्हे 
सप्तपदी के सातों वचन 
और मै तुम फिर हम हो जाएँ 
इस राह पर चलते चलते 

Friday, November 2, 2012

तेरी याद

गिरी असमान से
फंसी टहनियों पर 
फिसल कर न जाने 
कहाँ गिर पड़ी है 

तेरी याद कोने में 
छुप कर थी बैठी 
घनी रात तक मुझसे 
जमकर लड़ी है 

इसे देख कर
फेर लेती हूँ चेहरा 
मगर ढीठ ऐसी 
ये अबतक खड़ी है 

नहीं हार मानी है 
मैंने किसी से 
मगर इससे हारी 
ये जिद्दी बड़ी है 

Sunday, October 21, 2012



















रात बढती गयी
चाँद चढ़ता गया
नर्म लहरों पे
 नक्काशी गढ़ता गया

 हम लपेटा किये
 उँगलियों पर लटें
 दायरा उनकी यादों का
बढ़ता गया

दिन गुज़रता गया
 वक़्त ढलता गया
रौशनी पर सियाही सी
मलता गया

हम रुके भी थके भी
उबासी भी ली
सोच का सिलसिला
फिर भी चलता गया

सख्त है दिल बहुत
ये गुमां था हमें
पर ये तो मोम जैसा
पिघलता गया

पर पिघलने से जब
बूँद इसकी गिरी
एक नयी सी ही सूरत में
ढलता गया

सोचते सोचते लो
सुबह हो गयी
रंग मौसम का भी
अब बदलता गया

नर्म सी है हवा
नर्म सी रौशनी
जैसे हल्दी में
सिन्दूर घुलता  गया

Monday, October 15, 2012

ये सब भी ज़रूरी है, पढाई के अलावा...:)























बचपन में पैर के अंगूठे से
गीली मिट्टी पर
आड़ी टेढ़ी रेखाएं कुरेदते हुए
गुंधे हुए आंटे से
चिड़िया, तितली और कछुए बनाते हुए
दशहरे पर कालोनी के बच्चों की
जिद्द पर हर साल रावन बनाते हुए
कभी सोचा नहीं
की इसके पीछे का कारण क्या है

स्कूल में जिस दिन 
होना होता था खेल कूद,
या सांस्कृतिक कार्यक्रम
पापा कहते मत जाओ आज
पढाई तो होगी नहीं आज
और मै भी मान जाती खुश होकर
की चलो आज दिनभर
घर में मस्ती करूंगी

पर एक दिन न जाने क्यों
जिद्द कर बैठी मै
की आज जाने दो स्कूल 
और मान गए मम्मी पापा
उस दिन थी एक कला प्रतियोगिता
पुलिस लाइन में
सभी स्कूल के बच्चों को बुलाया गया था

मै भी गयी अपने स्कूल की ओर से
१ घंटे की प्रतियोगिता  के बाद
पुकारे गए नाम
दुसरे नंबर पर मेरा नाम था
जो भीड़ में मै सुन भी नहीं पाई थी
टीचर ने गोद में उठाया
और मुझे पुरस्कार देने के लिए
खड़ा कर दिया गया एक बड़ी सी मेज़ पर

दिया गया मुझे एक सर्टिफिकेट
और एक छोटा सा गुलाबी रंग का लिफाफा
और गूँज उठी तालियों की गडगडाहट 
वो मेरे जीवन की पहली प्रतियोगिता
और पहला पुरुस्कार था

उस दिन मुझे याद है
की स्कूल से घर तक
बिना रुके दौड़ी थी मै
घर के पास पहुँचते ही
रोकने लगे कालोनी के बच्चे
अरे रुको तो, दौड़ क्यों रही हो
पर मुझे तो मम्मी पापा के पास
ही जाकर रुकना था

बिना कुछ बोले सर्टिफिकेट 
और लिफाफा थमा दिया माँ को
लिफाफे से निकले २५१ रूपये
माँ मुस्कुरायी और चिपका लिया सीने से 
और पापा ने मान लिया 
ये सब भी ज़रूरी है
पढाई के अलावा

Sunday, September 23, 2012

तुम्हारे लिए

तुम्हे लगता है
भूल गयी तुम्हे मै

तुम्हारी तड़प से
अनजान हूँ मै

और छोड़ दिया तुम्हे
भाग्य के सहारे 

लेकिन सब जानती हूँ मै
और चाहती हूँ
तुम्हारे सब दुःख हरना

लेकिन तुम्हारे सुख का 
हर एक छोर 
मेरी उँगलियों में बंधे
धागों पर आकर
ठहर जाता है

जैसे नाचती है कठपुतली
धागों की मर्ज़ी से बंधी हुई

काट दो धागे
निर्बाध उडो, बहो, फिसलो, थिरको
नाचो और दौड़ पड़ो

तुमसे अलग मै कभी नहीं
तुम्हारे अन्दर बसी मै
तुम्हे देखती हूँ हर पल

और मानती हूँ ईश्वर से
हर पल एक नयी ख़ुशी 
तुम्हारे लिए

Monday, September 17, 2012


बूंदे जो निकली बादलों की छोड़ कर बाहें




बूंदे जो निकली बादलों की छोड़ कर बाहें
न जाने कितने हौसले और अनगिनत चाहें 
कुछ ढह गयी, कुछ बह गयी लब पर लिए आँहें 
कुछ गुमशुदा हैं अबतलक थी अजनबी राहें

Saturday, September 1, 2012















मुझे तुम याद आते हो
कभी तनहाइयों में यूँ

की जैसे रात हो जाती है 
सूनी चाँद तारों बिन

की सूरज सो रहा हो
रौशनी बिन आ गया हो दिन

की फूलों ने महक अपनी
तिजोरी में छुपा दी हो

की पेड़ों ने न दी हो छांव
हर पत्ती गिरा दी हो

की बारिश मुझ तलक आकर
बदल दे रास्ता अपना

की बेरंगा सा दीखता हो
मुझे रंगों भरा सपना

की सूनापन अजब सा
जिंदगी में आके बस जाये

कोई देखे मेरा गम
और मेरी हालत पे हंस जाये

Tuesday, August 7, 2012

मै सबके साथ होकर भी
अकेली हूँ न जाने क्यों?
कभी सुलझी
कभी उलझी पहेली हूँ न जाने क्यों?
बड़ी हिम्मत से मै हर रोज़
खुद को जोड़ लेती हूँ मगर
फिर भी मेरी आंखे पनीली हैं न जाने क्यों
हर एक रिश्ते को
सींचा है बड़ी शिद्दत मुहब्बत से
मगर खुद एक खाली सी हथेली हूँ न जाने क्यों
चुरा कर काश ले जाये
मेरा हर गम कोई आकर
कभी चट्टान थी
अब रेत की ढेरी हूँ, जाने क्यों?

Monday, August 6, 2012


















बारिशों में खिडकियों पर
थपथपाकर बह निकलती
फूल पौधे चूमती
लट पर ठहरती और फिसलती

धुल के कतरा कतरा 
कर देती सभी कुछ पानी पानी
शर्म के मारे ज़मी ने 
ओढ़ ली चुनर है धानी

मन बहकने सा लगे है
देख कर मेघा ये काले
कितना रोया है उमड़ कर
कितने इसने दर्द पाले

आज रो लेने दो इसको
दर्द बह जाने दो सारा
फिर नहीं गम होगा कोई
न कोई आंसू की धारा

हल्के बादल, हल्का सा मन
होंगी हल्की सी फुहारें
हौले हौले आ के लग जाएँगी
खुशियों की कतारें 

Tuesday, July 24, 2012


ये बारिश हुई है
या आंसू है मेरे
जो बरसे हैं ऐसे
की थमते नहीं हैं
धुले जा रहे हैं
हर एक हर्फ़ मेरे
नमी है ग़मों की
ये जमते नहीं है

Saturday, July 7, 2012

दो जून की रोटी जो मयस्सर न हुई
तो खुदखुशी कर छोड़ दी दुनिया उसने
उसको क्या पता था कही पर बोरियों में
सड़ते पड़े हैं उसके उगाये गेंहू

Saturday, June 23, 2012




आज  बहुत  दिन  बाद  दिखा  आँगन  सूखा
पानी की एक बूँद नहीं और धूप चटख 

चिड़िया जो फुदका करती थी इधर उधर
उसको भी लगता है मौसम गया खटक 

आँगन के पीछे एक पेड़ बड़ा सा है
सर सर करता था, देता था शीतल छांव

साथ छोड़ कर भाग रहे हैं पत्ते अब
लगता है पत्तों के भी निकले हैं पाँव

बहुत बुलाया, खेतों ने आवाजें दी 
सुनकर सारे बीज कोपलें जाग गयी 

दो बूंदे आंसू जैसी टपकाई और
बरखा रानी नखरे कर के भाग गयी

सूरज के तेवर कुछ ज्यादा चढ़े हुए
देर शाम तक दीखते हैं वो खड़े हुए

४ बजे जो भगा करते थे  घर को
सरकारी जन ऑफिस में हैं पड़े हुए

बरखा रानी बहुत हुआ अब बरसो न
तुम भी धरती से मिलने को तरसो न

तुमको पाकर सबकुछ होगा हरा भरा 
प्रेम बाँट कर अपना तुम भी हरसो न

Sunday, June 17, 2012


करवटें बेतरतीब सी



















करवटें बेतरतीब सी
न पलकों को बंद होने दे
न आँखों को खुलने  दें
न नींद को आवाज़ दें
न सपनो को घुलने दें

करवटें बेतरतीब सी
बिस्तर पर सिलवटों को बढाती 
रात की ख़ामोशी को चिढाती
न जाने कैसे भूले बिसरे किस्से सुनाती
हर आहट पर बेचैन कर जाती

करवटें बेतरतीब सी
आज मौका दे रही हैं छत की और निहारने का
कोई पुराना सा गीत गाने का
घडी की टिक  टिक  के साथ ताल मिलाने का
और वो सबकुछ सोचने का जो थकान भरी नींद अक्सर सोचने नहीं देती

करवटें बेतरतीब सी
आज कह रही है
निकल चलो एसी कमरे से बाहर
खुले आसमान के नीचे चांदनी तले बैठते हैं
अपनी परछाइयों से बातें करते हैं
और सोचते हैं की जिंदगी में बहुत कुछ है
कमाने, खाने और जिंदा रहने की चाह के अलावा

Friday, May 18, 2012


तेरी यादों के जंगल में
कभी सोये, कभी खोये

कभी खुल के हँसे हम
और कभी छुप छुप के हम रोये

कभी कागज़ की कश्ती पर
सफ़र कर आ गए वापस

कभी हंस कर उदासी के
सभी नमो निशान धोये 

Friday, May 4, 2012

वक़्त

चीनी में चाय की तरह
लम्हा लम्हा घुलता वक़्त
कंधे पर उठाये
न जाने कितनी यादों का बोझ
चलता रहता है लगातार
और छांटता बीनता रहता है
अच्छे बुरे लम्हों को
कभी करता है कुछ बोझ हल्का
तो कभी बटोर लेता है
कुछ और नर्म मीठी यादें अपने झोले में
और यूँ ही चलते फिरते एक दिन
गुज़र जाता है वक़्त
फिर पलट कर
वापस न आने के लिए

Sunday, April 15, 2012

हवा के परों पर
है मेरी धरोहर
कहाँ कब तलक है
ये कैसे बताऊँ

हर एक रास्ता
मुझको अपना लगे है
किसे मोड़ समझू
मै किस राह जाऊं

भरे है खजाने
कई चाहतों के
मै सबको बता दूँ
या सबसे छुपाऊँ

जो यादें पलट कर
दिखाती है चेहरा
उन्हें याद रखूं
या फिर भूल जाऊं

मुझे देखकर
उनकी पलकें हुई नम
उन्हें चूम लूँ
या गले से लगाऊं

मुझे जिंदगी ने
सिखाया बहुत कुछ
है अब वक़्त आया
उन्हें आजमाऊं

Wednesday, March 28, 2012

ठहर जाने दो लम्हों को

ठहर जाने दो लम्हों को
बिखर जाने दो कुछ मोती
तुम्हारी याद के चादर तले
ये रात है सोती

सितारे आ टपकते हैं
मुझे तन्हा जो पाते हैं
ये जुगनू रात भर
मेरी तरह ही टिमटिमाते हैं

चुराने आ गए हैं फिर
मेरी आँखों के सब सपने
अँधेरे मेरे कानों में
बहुत कुछ बुदबुदाते है

पुराने से पिटारे कुछ
अभी भी अधखुले से हैं
कही रेशम से आंचल के
सितारे झिलमिलाते हैं

यूँ हम तो चल ही पड़ते हैं
वो जब आवाज़ देते हैं
लो अब हम भी उन्हें
आवाज़ देकर आज़माते हैं

शिकायत वो भला हमसे
करें किस बात की बोलो
जो न तो याद करते हैं
न हमको याद आते हैं

मुसाफिर जिस गली के हम रहे
माहों को. सालों को
कभी उनके परिंदे
हम तलक भी उड़ के आते हैं

Thursday, March 22, 2012

टूटता तारा


बहुत दिनों बाद
आज ऑनलाइन थी मै
मिला एक पुराना मित्र
मेरी ग्रीन लाइट देखते ही
उसका पहला शब्द
areeeeeeeeeeyyyyyyyyyyyyy??????
कहाँ थी तुम इतने दिनों से ??
कोई खबर क्यों नहीं दी ??
तुम्हे पता है क्या क्या हुआ इन दिनों?
मेरी शादी हो गयी
नौकरी छोड़ दी
अपना काम शुरू किया
तुम्हारा लिखा एक गाना गाया शो में
बहुत तारीफ हुई
फिर कुछ लिखना तो बताना.....

मै बोली तुम चुप हो तो मै कुछ बोलू
वो शर्मिंदा सा मुस्कुराया
मैंने कहा नींद आ रही है
जाती हूँ

वो बोला
पता है इतने दिनों बाद
तुम्हे ऑनलाइन देख कर कैसा लगा?
लगा टूटता तारा कैच लिया हो आज
कुछ देर तो महसूस करने दो इसकी रौशनी

और मै मुस्कुरा कर बोली
बीवी को बुलाओ
उसे भी टूटता तारा दिखाओ
मै देखना चाहती हूँ
उसकी रौशनी में और क्या क्या टूटता है...:)

Sunday, March 11, 2012

आइसक्रीम वाला


सड़कों का सन्नाटा
चटकीली धूप
सूखे गिरे पत्तों की सरसराहट
हवा की सांय सांय
इक्का दुक्का दिखते लोग
बड़े लाल घड़ों वाले ठेले के साथ
वो जलजीरे वाला
दूर किसी कालोनी में
आइसक्रीम वाले की गुहार
और मोटे पर्दों वाली खिडकियों से
झांक कर उसे रुकने का इशारा करते बच्चे
अठन्नी चवन्नी जोड़ कर
दौड़ती हुई आई कमली
आज फिर उदास लौटी है
अभी भी पच्चास पैसे कम पड़ गए
उसकी आइसक्रीम के लिए
लेकिन आस टूटी नहीं है
कल फिर आइसक्रीम वाला आयेगा
तब तक शायद अठन्नी का जुगाड़ हो जाये

Thursday, February 23, 2012

रात


कजरारी सी काली रातें
प्यार भरी कुछ मीठी बातें
कुछ तुम कहना, कुछ मै बोलू
रात सुनहरी हो जाएगी

होठों की नरमी को छूकर
जुगनू सी आँखों में खोकर
बाँहों में मुझको भर लेना
रात फिसल कर खो जाएगी

हाथों में जब हाथ थामना
जीवनभर का साथ थामना
रात भले कितनी काली हो
नर्म चांदनी बो जाएगी

Tuesday, February 21, 2012


चाँद तारों की नहीं
न आसमां की चाह है

मै ज़मी की और
ज़मी से ही जुडी हर राह है

देखने वाले मुझे कहते हैं
एक ठहरी नदी

मै समुन्दर वो
नहीं जिसकी कोई भी थाह है

Sunday, January 29, 2012

चाहत के दरख्त


चाहत के दरख्तों पर
कुछ ख्वाब उगे हैं

कुछ कच्चे हैं, खट्टे हैं
कुछ बढ़ के झुके हैं

कुछ टूट कर गिरे हैं
उगने के साथ ही

कुछ हैं अभी डाली पर
बढ़ने को रुके हैं

कुछ पत्तियों से हल्के
झोकों से ढह गए

कुछ ओस में भीगे और
बारिश में बह गए

कुछ ने रुलाया इतना
की नम हुआ मौसम

कुछ लब बिना हिलाए
हर बात कह गए

कुछ झेल कर तपिश को
मुरझाने लगे हैं

कुछ मुस्कुरा कर सारे
तूफ़ान सह गए

Friday, January 20, 2012

बारिश की नासमझी

बारिश की नासमझी देखो
भिगो गयी हर भीगा कोना

जो सूखा था, वो सूखा है
न आंसू न कोई रोना

रेशे उसके सख्त हो गए
जो था पहले नर्म बिछौना

झूठ किसी ने बोला ऐसा
सच का कद लगता है बौना

जो देखा करते थे पहले
झिलमिल रातें, ख्वाब सलोना

आंखे उनकी भूल गयी है
किसको कहती थी वो सोना

Tuesday, January 17, 2012

कुछ यादें कभी नहीं गुज़रती


आज फिर गुजरी हूँ
गोमती के उसी पुल से
जहाँ से आप और मै
सालों तक गुज़रते रहे
आपकी साईकिल पर आगे बैठी मै
दो चोटी और छोटी सी फ्राक पहने
पूछती रहती थी दुनिया भर के सवाल
छोटी छोटी बातों पर मचाती थी बवाल
और आप देते थे बिना थके सारे जवाब
कभी सच्ची बातें, कभी झूठे से ख्वाब
आज भी वही गोमती का किनारा
वही सड़कें वही नज़ारा
किनारे पर लगे हुए वही पेड़
वही बहती हुई नदी, वही मेड़
साईकिल की जगह कार है
परिवार का ढेर सारा प्यार है
आज मै बच्ची नहीं माँ हूँ
ढेर सारे रिश्तों का मान हूँ
सबकुछ है वैसा ही जैसा होना चाहिए
पर ये रास्ता आज भी रुलाता है
आपकी याद दिलाता है
वक़्त गुज़र गया पापा
पर कुछ यादें कभी नहीं गुज़रती

Sunday, January 8, 2012

मेरे हर एक दर्द को तुम अपना लेते हो



मेरे हर एक दर्द को तुम अपना लेते हो
मै जब रोती हूँ मेरे संग गा लेते हो
स्वाद भरा हो या हो बिलकुल बेढंगा सा
प्यार से जो भी देती हूँ वो खा लेते हो
कितनी भी बातें कर लूँ मै उलटी सीधी
सुन लेते हो सबकुछ, और समझा देते हो
गुस्सा किसको कहते हैं ये तुम क्या जानो
मेरे गुस्से को हंसकर सुलझा लेते हो
काम कोई रह जाये गर कुछ कही अधूरा
बिना मदद के खुद ही सब निपटा लेते हो
.
.
.
.
बहुत देर से देख रही थी मै ये सपना
तुम आते हो चाय के लिए जगा देते हो

ये सब सिर्फ सपने में संभव है...:)