Tuesday, December 27, 2011

पुराने दर्द

कई बार उभर आते हैं पुराने दर्द
और हम भूल जाते हैं
की ये चोट लगी कैसे थी
फिर कोई मिलता जुलता इत्तफाक
याद दिला देता है उस चोट की
और हम वही मरहम
बता देते हैं उसे
जिसने नयी नयी खायी है वो चोट
और इस तरह
हम न सही कोई और सही
बच जाता है
दर्द भरे लम्बे एहसासों से

12 comments:

  1. अक्सर उभरते हैं पुराने दर्द ....
    सुन्दर रचना

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  2. अच्छी सुन्दर रचना.

    आनेवाले नववर्ष की शुभकामनाएँ.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,रंजना जी.

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  3. बहुत प्यारी रचना..
    यही तो है दुःख सांझा करना..
    बहुत खूब.

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  4. वाह ! सुंदर रचना बेहतरीन प्रस्तुति !

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  5. बिल्कुल सही कहा

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  6. और दूसरा बच जाता है दर्द के लम्बे एहसास से ...
    घायल की गति घायल जाने !
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति !

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  7. जिंदगी का एक सच , खूबसूरती से शब्दों में समेट कर रख दिया आपने

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  8. बहुत खूब ... अपने दर्द का इलाज तो ठीक है .. जरूरी नहीं दूसरे के भी काम आए ... लाजवाब रचना है ...

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  9. बेहतरीन प्रस्तुति...

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  10. dard bhulana aasan nahi..
    yadi aadurini ho to wah aur bhi dukhprad hota hia..
    dard mein piroyee badiya rachna...

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