Friday, July 29, 2011

तल्खियों की बदजुबानी

तल्खियों की बदजुबानी
में भी होती है कहानी
दिल का बह जाता ज़हर सब
बचता है मीठा सा पानी

गम की हर एक धूप ढल जाती है
कितनी भी चटख हो
सुख के बादल जब बरसते है
ज़मीं हो जाती धानी

जिंदगी को मुस्कुरा कर
देख लो बस एक नज़र भर
सबकी एक जैसी ही है
तेरी हो या मेरी कहानी

Monday, July 25, 2011

चले आओ...चले आओ

कही एक राह कच्ची सी
किसी मासूम बच्ची सी
मुझे आवाज़ देती है
चले आओ...चले आओ

दिखावे का चलन छोड़ो
वहम जितने भी है तोड़ो
अरे अब तो कदम मोड़ो
चले आओ...चले आओ

भिगो कर खुद को बारिश में
दिल-ए-खुद की सिफारिश में
मौसम की गुज़ारिश में
चले आओ...चले आओ

चलो हीरों को हम ढूंढे
बटोरे फूल पर बूंदे
कही बैठें पलक मूंदे
चले आओ...चले आओ

घने पत्तों की छाँव में
किसी छोटे से गाँव में
पहन पाजेब पाँव में
चले आओ...चले आओ

ये माना राह पथरीली
कही सूखी..कहीं गीली
कई नज़रें हैं ज़हरीली
चले आओ...चले आओ

की अब तो मान लो अपना
मै सच हूँ, हूँ नहीं सपना
तुम्हारा नाम है जपना
चले आओ...चले आओ

Friday, July 1, 2011

मुश्किल बहुत ये बात है तो क्या?


















क्यों आंखे नम करू
फहरिस्त गम की साथ है तो क्या?

मै नन्हा सा दिया
लम्बी बहुत ये रात है तो क्या?

क्यों गम के ज़िक्र में
बर्बाद करू कीमती ये पल?

तलाशूँ हल कोई
मुश्किल बहुत ये बात है तो क्या?

खुदा पर क्यों भरोसा करके
बैठूं हर मुसीबत में?

मुझे मालूम है की सिर पे
उसका हाथ है तो क्या?

तराशे पत्थरों को
मान लेते हैं खुदा जब लोग

मुझे रब ने तराशा
खुद में खुदा को मान लूँ तो क्या?