Tuesday, May 31, 2011

कुछ सन्नाटा रह जाता है
भीड़ भरी राहों में भी
कभी कभी दम घुट जाता है
बहुत तंग बाँहों में भी

Sunday, May 29, 2011

देवी बनाकर, पूज कर
इन्सान न रहने दिया
मन में था जो सब दब गया
कुछ न कभी कहने दिया

ये ताज सोने का बहुत भारी है
मेरे सिर पे पर
देखे नहीं नासूर और
रिसता लहू बहने दिया

वो एक पल भी दर्द का
बर्दाश्त कर पाए नहीं
सदियों से हमको दर्द का
ये सिलसिला सहने दिया

Friday, May 27, 2011

मै अपनी लिखी कविताओं की पुस्तक प्रकाशित करवाना चाहती हूँ. कृपया इस विषय में मेरा मार्गदर्शन करें.

Monday, May 16, 2011

आओ ढूँढ निकाले
सारी परेशानियाँ
घर के हर कोने से,
दिमाग से
ऑफिस की पोलिटिक्स से
रिश्तों के ताने बाने से
फैलते खर्चों से
घटती आमदनी से
बढती जरूरतों से
गर्मी के उफान से
उम्र की ढलान से
बच्चों की मोटी फीस से
मन की टीस से
और फिर सलेक्ट आल करके
दबा दे डिलीट का बटन
फिर रिसाइकिल बिन को भी
खंगाल डाले
न रहे परेशानियाँ
न उनका कोई निशान
और फिर जिंदगी को जिए
सीना तान....

...जानती हूँ मै
बहुत बचकाना सा ख्वाब है ये
पर सुनी है मैंने ये कहावत
की जब ख्वाब ही देखने है तो
किचड़ी का क्यों??
बिरियानी का देखो...:)