Monday, March 28, 2011

चाँद गम से चूर होकर अश्क टपकाता रहा


और सब कहते रहे ये चांदनी की रात है


बात जैसी दिख रही है हो हकीकत में वही


ये तो बस गफलत है, तेरी कम अकल की बात है

Sunday, March 27, 2011

मुझे तनहाइयों से डर नहीं लगता साथी

मुझे तनहाइयों की याद बहुत आती

मै खामोशियों में खुद को ढून्ढ लेती

आजकल खुद की बहुत याद मुझे आती है

Thursday, March 24, 2011



क्या पाया, क्या पाकर खोया
क्या काटा और क्या क्या बोया


किस्मत के धोबी ने हमको
हर पत्थर पर जमकर धोया


गर्दन करके कलम मेरी

वो बोले ये क्यों कम है रोया


मेरा सपना डर के मारे
रातों को भी रहता सोया

हमने बड़ी ख़ुशी से
हर एक बोझ जिंदगी का है ढोया


ग़ालिब होते तो कहते
मेरा गम भी कोई गम था मोया

Saturday, March 19, 2011



जिंदगी की चादरों पर
रंग गाढ़े, रंग हलके

कुछ छलक कर खो चुके हैं
कुछ छलकने को हैं ढलके

कुछ बिखर कर बह चुके हैं
कुछ फिजाओं में है महके

कुछ बड़े नाज़ुक नरम
और कुछ गरम शोलों से दहके

Tuesday, March 15, 2011



जो बरस कर थम चुका है
वो कही पर जम चुका है
सुर्ख गाढ़े से लहू सा
धमनियों में रम चुका है

दर्द देकर दूसरों को
कब किसी का गम चुका है
प्यार की मीठी नज़र पर
आसमान का सर झुका है

सूनी सी टहनी पर फिर से
फूल कोई खिल चुका है
चुप हैं वो बरसों से जैसे
होंठ कोई सिल चुका है

आसमान का चाँद तो
अपनी पहुँच में था नहीं
लहरों पर उसका चमकता
अक्स हमको मिल चुका है