Saturday, December 18, 2010

आज फिर बारिश ने धो डाली ज़मीन


आज फिर बारिश ने धो डाली ज़मीन
धुल गयी बादल के आँखों की नमी


स्याह सी परतें थी पलकों पर जमी
जाने कबसे थी बरसने को थमी


सोचती हूँ कुछ तो राहत होगी उसको
आई होगी दर्द में कुछ तो कमी

7 comments:

  1. ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥

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  2. आज फिर बारिश ने धो डाली ज़मीन
    धुल गयी बादल के आँखों की नमी

    दिल में उतरती हुयी ... खूबसूरत रचना ...

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  3. घुट जाता है दिल जब घने बादलों की तरह ...
    आखें छलक आती हैं बारिश की बूंदों की तरह ...
    बरसात के बाद जैसे आसमान और जमीन साफ़ धुले हुए लगता हैं , दर्द भी पलकों के बरसने से धुल जाता होगा

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  4. रचना पढ़ कर सुखद अनुभूति हुई। बधाई

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  5. अंतर्मन के कपाटों पर दस्तक देती प्रशंसनीय प्रस्तुति

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