Tuesday, April 13, 2010

सही वक़्त पर सही प्रतिक्रिया

मैंने देखा
घर से काफी दूर
बहुत तेज़ चमक के साथ
मिट्टी में कुछ झिलमिलता सा
पर बादल के टुकड़े
जैसे ही सूरज को ढकते
सब शांत हो जाता
और फिर बादल के हटते ही
फिर वही ज़ोरदार चमक
जैसे सूरज का कोई टुकड़ा
टूट कर गिर गया हो ज़मीन में
मुझसे रहा ही नहीं गया
सोचा जाकर देखूं
इस सूरज के छोटे टुकड़े को करीब से
पास जाकर देखा
एक चमकीली सी कागज़ की पन्नी
हवा के थपेड़ों से फडफडा रही थी
और उसपर पड़ती धूप की किरने
उसकी चमक को दसगुना बढा रही थी
किसी ने सही कहा है
सही वक़्त पर सही प्रतिक्रिया
किसी को कहा से कहाँ पहुंचा देती है

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